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[ पद्मिनी चरित्र चौपई राघव चेतन का दरवार प्रवेश इम रहता सुख सुसदा, जे हूओ छ विरतंत । सुणयो चित्त देइ सुगण, मन थिर' करी एकंत ॥३॥ राघव चेतन दोइ वसे, चित्रकूट मे व्यास । राति दिवस विद्या तणो, अधिको अछे अभ्यास ॥४॥ राजा मान दियो घणो, भारथ वाचे आय । राज लोक मे रात दिन, महल अमहले जाय ।। ५ ।।
राघव चेतन पर कोप ढाल ( २ ) राग-गौडी, मन भमरा रे० ए देसी, एकणि दिन पदमणि तणे मन रंगे रे,
संगई बैठो राय लाल मन रंगेरे। क्रीड़ा आलिंगन करें मन रंगे रे, तेहवें व्यासजी जाय लाल ॥१॥ राघव ऊपरि कोपीयो मन०, मूह चढ़ाई राय लाल मन रंगें रे। होठ वेहुं फुर फुर करइ मन०, किम आयो अण प्रस्ताव लाल०॥२॥ फिट रे पापी बंभणा मनरंगें रे, मूरिख जगमार लाल मन रगेंरे । फिट रे थोथा पंडीया मन रंगे रे,
मूल न समझ गमार लाल मन रगें रे ।। ३ ।। अणरुचती वातां करें म० अणतेड्यो आवें गेह लालक वोल अणवोलावीयो म० साचो मूरिख तेह लाल० ॥४॥
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१ कान २ तन : पोथा ४ साचठ मूरिखि विचार ।