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पद्मिनी चरित्र चौपई]
[२३ (जाणे) मोती लड़ पोई धस्या रे, अधर विद्रम विचि दंत रे रंग चमकै चूनी सारिखा रे, दाडिम कूलीय दीपंत रे रंग० ।। १३ ।। कोकिल कंठ सुहामणो रे, पति भुज वल्ली खम्भ रे रंग । मोतिन की दुलड़ी वणी रे, त्रिवली रेख अचंभ रे रंग० ॥ १४ ॥ भुजादण्ड सोवन घड्या रे, कोमल कलस' सुनालि रे रंग० । मूगफली चम्पा कली रे आंगुलिया सुविशाल रे रंग० ॥ १५॥ कनक कुंभ श्रीफल जिसा रे, कुच तटि कठिन कठोर रे रग० । पाका वील नारिंग सा रे, मानुं युगल चकोर रे रंग० ॥ १६ ॥ कोमल कमल ऊपरें रे, त्रिवली समर सोपान रे रंग। कटि तटि अति सूछिम कही रे, थूल नितंब वखाण रे रंग० ॥१७॥ जघा सुडा करि वणी रे, उलटो कदली खंभ रे रंग०॥ सोवन कच्छप सारिखा रे, चरण हरण मन दंभ रे रंग० ॥१८॥ सकल रूप पदमणि तणो रे, कहत न आवै पार रे रंग० । 'लव्धोदय' कहै आठमी रे, ढाल रसिक सुखकार रे रंग० ॥१९॥
दोहा हंस गमणि हेजई हीइं, राति दिवस सुख संग। राणो लीण हुओ तुरत, जिम चन्दन तरुहि भुजंग ।। १ ।। दूहा गूढा गीत स्यु', कवित कथा बहु भाति । रीझवियो राणो चतुर, क्रीड़ा केलि करंति ॥२॥
१-कमतसुमाल २ पृथुल