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द्वितीय खण्ड
मंगलाचरण वाणी निर्मल विस्तर, नव खडेहि नाम । तिण हेते श्री गुरुभणी, प्रथम करूं प्रणाम ।।१।। सुगण सुणेज्यो श्रुतिधरी, परहो तजो प्रमाद । बीजें खंड वखाणता, सुणता उपजै स्वाद ||२|
पद्मिनी सौंदर्य वर्णन
ढाल १ बागलीया री राति दिवस भीनो रहै रे, पदमणि स्यु बहु प्रेम रे रग रसीया । पंच विषय सुख भोगवै रे, दोगंधक सुर जेम रे रंग रसीया ।।१।। राय राणी मन बसिया, अविहड
जिम जोडी रसिया, जिम कंचन रस रसीया। जिम जोड़ी सारसीया रे, अविहड़ लागी प्रीत रे रंग रसीया आग जीव एक नई जूजूई रे, देही दीसें दोइ रे रग० । चित लागो चतुरां तणो रे, चोल तणी परि जोइ रे रंग ॥२॥