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पद्मिनी चरित्र चौपई]
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__ भोजन प्रसंग एकण दिन भोजन समई जी, दासी वोलैं राज । रा० पीउ पधारो भोजन समई जी, ठाढो होवै नाज ॥रा०८|च०॥ सिंहासन सोवन तणो जी, आवै बैठा राज ।रा रतन जड़ित थाली वड़ी जी, कनक कचोला बाज' रा०||१|च०॥ रुडी परई परुसई रसवती जी, राजा जीमइ राग ।रा। खाटा मीठा चरपरा जी, सखर वणाया साग ।रा०॥१०॥चा कदली दल हाथै करी जी, ढोले सीतल वाय रा०॥ विचि विचि मीठी वातडी जी, जोमता घणो जीमाय।।१शाच॥ मोसा दोसा मसकरी जी, हास, वीनती तेहरा कहिवो हुवे ते सहु कइइ जी, भोजन अवसर जेह ।।१२।०॥ जीमता रूडी जुगति स्युं जी, कहि राजा किण हेतरा स्वाद रहित सव रसवती जी, का न करो चित चेत ।।१३।।च॥ आजकालिए रसवती जी, निपट करो निसवाद राण कहि चतुराइ किहा गइ जी, के पकस्यो परमाद ॥१४॥चा तव तटकी बोली तिसई जी, राणी मन धरि रोस ।रा राणी आणो का नवी जी, द्यो मति मुझनै दोस।।१शाचा म्हे केलवि जाणा नहीं जी, किसो अ करीजें वाद राण पदमणि का परणो नवी जी, जिम भोजन हुवे स्वाद ॥१६॥च०॥
१ साज २ नारी ३ झूठ