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इन वचनों से राणा मन ही मन सब कुछ समझ गया । सुलतान ने उसे पद्मिनी को जल्दी विदा देने की आज्ञा दी। राणा पालकियों के बीच में से वादल के संकेतानुसार तीर की तरह निकलता हुआ तुरन्त गढ़ में जा पहुंचा। उसके सकुशल पहुँचने के उपलक्ष मे संकेतानुसार जंगी नगारे निसाण वजा दिये गये। चित्तौड़ गढ़ मे राणा के पहुंचने से सर्वत्र हर्ष उल्लास. छा गया।
जव गढ मे नौवत बजते हुए सुने तो गोरा बादल ने समस्त सन्नद्धवद्ध सुभटों के साथ शाही सेना मे मार काट मचा दी। विस्तृत शाही सेना तो पहले ही कूच कर कोशों दूर पहुंच चुकी थी। अतः जो चार हजार सुभट सुलतान के पास थे, गोरा और बादल ने घमासान युद्ध करके उनका सफाया कर डाला। अन्त में गोरा ने जब सुलतान पर आक्रमण किया तो वह भागने लगा। यह देख बादल ने कहा-काकाजी इस कायर निर्वल को छोड दो। भगते पर वार करना क्षात्र धर्म के विपरीत है। किले पर खड़े राणा आदि सभी लोग गोरा के वीरत्व की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे।
इस युद्ध मे गोराजी काम आये, बादल ने सुलतान को जीवित छोड़ कर शाही लश्कर को लूट लिया। दो दिन के . वाद सुलतान एक खवास के साथ मारा माग फिरता नमान के समय लश्कर के निकट पहुंचा। खवास के खवर करने पर अमीर उमराव आकर सुलतान से मिले। उसे भूखा प्यासा