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________________ (५८ ) मुद्राएँ दीं। वह सारा धन घर मे रख आया और सुभों को सारे संकेत समझाकर सुखपाल के आगे आगे स्वयं चलने लगा। बादल को देखकर सुलतान ने उसे अपने पास बुलाया। सयोग की बात थी कि राघवचेतन बडा भारी बुद्धिमान था, पर स्वामिद्रोह के पाप के कारण उसकी बुद्धि पर पत्थर पड़ गये, अस्तु । बादल ने निवेदन किया-पद्मिनी ने सदेश भेजा है कि आपकी सब रानियों मे मुझे पटरानी स्थापित करना होगा। सुलतान के सहर्ष स्वीकार करने पर वह वारबार स्वर्णकलश वाली तथा कथित पद्मिनी के पालकी और सुलतान के बीच सदेश लाने के बहाने फिरने लगा। उसने कहा-पद्मिनी ने कहलाया है कि हमे आते-आते बहुत देर हो गई, अब कृपाकर राणाजी से एक बार अंतिम मिलन का अवसर दें, क्योंकि लोक व्यवहार मे मै उनके साथ व्याही गई थी, तो दो बात कर, उनसे अन्तिम विदा तो ले आऊँ ! सुलतान को पद्मिनी का यह शिष्टाचार योग्य लगा और उसने तत्काल राणा रतनसेन को बन्धन मुक्त कर देने का आदेश दे दिया। जब यह शाही आज्ञा लेकर बादल राणा के पास गया तो राणा ने कुपित होकर बादल से कहा-धिक्कार. हो वादल! तुमने क्षत्रियत्व को लजाने वाला यह क्या सौदा किया ? स्वामीद्रोह करने के साथसाथ तुमने सदा के लिये मेरे. कुल मे भी कलक लगा दिया ! बादल ने कहा-चिन्ता न करें, यह खेल दूसरा है, आपके भाग्य से सब अच्छा ही होगा।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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