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( ५१ ) व्यय का विचार आता हो तो हम लौटे चलें । राणा ने कहाभोजन के लिए ऐसी क्या बात है, तुन्छ वात न कहें, इससे दुगुने हों तो भी खान पान की कमी नहीं। इस प्रकार दोनों मेल-जोल से बातें करते महलों मे आये । राणा ने शाही भोजन के लिए बडी भारी तय्यारी की। राणा ने जब पद्मिनी को आज्ञा दी कि वह सुलतान को परोसे | तो उसने अपने जैसी ही रूप रंगवाली दासी को इस कार्य के लिए नियुक्त कर दिया। राणा के सजे हुए मंडप मे सुलतान को पद्मिनी की दासी ने नाना वेश परिवर्तन कर विविध व्यंजन परोसे। सुलतान उसकी रूप-माधुरी से विह्वल होकर कहने लगा-राणा के घर मे तो इतनी पद्मिनिया है, और मेरे यहा एक भी नहीं तव मेरी बादशाही में क्या रखा है। राघव चेतन ने कहा-यह तो पद्मिनी की दासी है | पद्मिनी तो ऊँचे महलों के समृद्ध कक्ष में रहती है, उसके तो दर्शन ही दुर्लभ है । इतने ही में पद्मिनी ने सहज भाव से शाही भोजन-समारोह को देखने के लिए रत्नजडित गवाक्ष की जाली में से झाँका। राघव चेतन ने संकेत से पदमिनी को दिखाया और रूप मुग्ध सुलतान को विह्वल और मूर्छित होते देख, उसे किसी युक्ति से प्राप्त करने की आशा देकर आश्वस्त किया।
भोजनान्तर राणा ने सुलतान को हाथी, घोड़े, वस्त्राभरण भेंट कर परस्पर हाथ मिलाये हुए चित्तौड़ दुर्ग मे घूम घूम कर सारे विषम घाट-स्थान दिखलाए। सुलतान ने राणा से मा