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( ५० ) के लिए राणा के पास भेजा। उन्होंने राणा से कहा-सुलतान चाहते है कि अपने परस्पर प्रीति की वृद्धि हो। अतः वे गढ़ देखकर, पद्मिनी के दर्शन व उसके हाथ से भोजन कर विना किसी प्रकार के दण्ड, भेंट लिए वापस दिल्ली लौट जायेंगे। राणा रतनसेन कपटी सुलतान की मीठी बातों के चक्कर में आ गया और सुलतान के अधिकारियों के सुस-प्रतित्रा पूर्वक कहने पर उसने थोड़े लश्कर के साथ चित्तौड़ दिखा कर गोठ जिमाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
सुलतान अलाउद्दीन के पास व्यास राघव चेतन राणा के घर का पूरा भेदू था। उसकी मंत्रणा के अनुसार ही वह अपना कपट-चक्र संचालन करता था। सरल स्वभावी राणाने म त्रियों को स्वागत के लिए भेजकर सुलतान को बुलाया। गढ़ के द्वारा खोल दिये गए। सुलतान तीस हजार सैनिकों के साथ गढ़ में प्रविष्ट हो गया। इतने सैनिक देख राणा के मन में खटका हुआ और उसने अपनी सेना को तैयार होने का सकेत कर दिया। सुलतान के यह कहने पर कि क्यो सेना एकत्र करते हो, हम गढ़ देखकर लौट जावेंगे, तो राणा ने कहाअपने वचनों के विपरीत आप तीस हजार सवार क्यो लाये ? मेरी सेना के वीर इन्हे क्षण मात्र मे पीस डालेंगे। सुलतान ने छलपूर्वक कहा-राणा | आप सदेह क्यों करते हो। मेहमान थोड़े हों या अधिक, आ जावें उनका तो सत्कार करना ही चाहिए। आज तो खाद्यपदार्थ सस्ते है,सुकाल है, यदि भोजन