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( ५२ ) जाये भाई के सदृश प्रेम प्रदर्शित करते हुए विदा मागी और हाथ पकड़े पकड़े प्रेमालाप पूर्वक पहुंचाने के बहाने वह उसे गढ के बाहर तक ले आया और राघव चेतन की सलाह से सुभटों द्वारा राणा को कब्जे कर गिरफ्तार कर लिया। राणा के साथ मे जो थोड़े बहुत सुभट थे वे हक्के बक्के और किंकर्तव्य विमूढ हो गए। राणा के हाथ पैर मे वेडी डाल दी गई। गढ मे यह खबर पहुंचने पर सुभटों के बीच बैठकर वीरमाण अपना कर्तव्य स्थिर करने के लिए विचार विर्मश करने लगा। इतने ही मे दो शाही दूत आये और उन्होंने यह शाही सन्देश सुनाया कि-सुलतान पद्मिनी को प्राप्त करके ही राणा को मुक्त कर सकता है, उसे और किसी वस्तु की वाला नहीं है ! यदि आप लोग पद्मिनी को नहीं दोगे, तो शाही सेना द्वारा दर्ग को चूर कर राज्य छीन लिया जायगा । वीरभाण ने सोचविचार कर प्रातः काल उत्तर देने का कह कर दूतो को विदा। किया।
वीरभाण ने सुभटों से नाना विचार विमर्श कर निश्चय किया कि पद्मिनी को देकर राणा को छुड़ा लेना ही श्रेयस्कर है ! निर्नायक सुभट निरुपाय होकर सत्वहीन हो गए। वीरभाण के हृदय में अपनी माता के सौभाग्य उतारने में कारणभूत पद्मिनी के प्रति सद्भाव की न्यूनता थी ही। अतः पद्मिनी के लिए अपना रास्ता स्वयं निर्धारित करने के सिवा और कोई चारा नहीं रहा । वह अपनी शीलरक्षा के लिए प्राणों