SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२] [गोरा बादल चौपई कवित्त ससिक पुरुष-संयोग, नारि पदमावति लोडै, मृग नर सु चित्रणी, प्रेम पूरण सूजोड़े। वृषभ पुरुष हस्तनी, भोग अत ही सुख पावे, अश्व पुरुष संयोग, नार सखनी सुहावै । मृग ससिक वृपभ अरु अश्व पुनि, जाति च्यारि पुरुषा तणी, अल्लावदीन सुरताण, सुणि, जात च्यार नारी तणी ।। ४८॥ दू नारि जाति सुण पातिसाह, राघव लियो बुलाय, दोय महस मुझ हुरम है, देखि महल मे जाय ।। ४६ ॥ राघव कदै नरिंद सुनि, गरमहल मे न जाय, छाया देख तेल मे, नारी देऊ वताय ।। ५० ।। कवित्त हुकम कियो पतिसाह, नारि सिंगार बनावहु, तेल-कुड भर धरो, आय दीदार दिखावहु । हुरमा सकल निहार, तवं राघव यू भाखै, हस गमन, मृग नैन, रूप रंभा को राखे । चिनन, हस्तन, संखनी, पातसाहजादी घणी, सरस त्रिया मे सुन्दरी, नहीं साह घर पदमणी ।। ५१ ।। कहे ताम सुलतान, वेग पदमनी वतावहु, जहाँ होइ तहाँ कहो, जो कछ मांगो सो पावहु ।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy