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गोरा बादल चौपई]
[१६३ पदमन सिंघलदीप, उद्ध-पै-पार, पयंप, देख समुद्र, सुलतान, हिया कायर का कंपै। यू सुनवि चढ्यौ सुलतान, तब आय उदध ऊपर पड्यौ, पदमनी कहाँ राघव कहो, पातसाह अत हठ चढ्यो ।। ५२ ।।
सोरठा राघव लह प्रस्ताव, पातसाहपै यूं जप । पदमनि नैड़ी ठाँव, रतनसेन चहुवाणपै ॥ ५३ ॥
दूहा सुणवि चढ्यौ सुलतान तब, चलियो गढ़ चीतोड़। दिया ढमामा दिल्लिपत, भई राय पर दोड़ ।। ५४ ।। काँपे सगले राण, चिहूँ चक्क खलभल भई। खुर-रज छायो भाण, चोट नगारै जब दई ॥ ५५ ।।
__ छंद जात रेसाल चढे चिहूँ दिसि साह के दल, धरै धीरज कौन ? । अभिमान-आणंद अंग उपजौ, गिण लगन न सौंन ।। ५६ ।। असवार त्रय लख साथ अदभुत, पाखरे ज तुरंग । ताजी स तुरकी औ अराकी, सबज नीले रंग ।। ५७ ।। कम्मेत, काले, हासिले, सामुद्र, अर तबरेस। अवलक, सुजॉम, सुवाहिरे, सवज नीले नेस ।।५८ ।। मारंग, केहर अरु सरौजी, भले पंच कल्याण । नाचंत पातर ज्यू तुरंगम, रतन-लड़ित पलाँण ।। ५8 ।।