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गोरा बादल चौपई ]
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राय देय सनमान, पास अपने बैठाये, कहो दीप की बात, जहाँ ते तुम चल आये। क्या-क्या उपजत उहा, दीप सिंघल है कंसा, कहै भाट सुनो राय, कहूँ देख्या है जैसा। उदध-पार अदभुत नगर, सोभा कहि न सकू घणी, ऐरापति उपजत उहाँ, अवर नार है पदमणी ॥ ६ ॥
पदमावति नारी कसी, कहो। भाटजी, वात, भाट कहै, नरपति सुणो, च्यार रमण की जात ।। ७ ।। इक चित्रनि, इक हस्तनी, एक सखनी नार,' उत्तम त्रीया पदमनी, तस गुण अपरंपार ।। ८ ।।
चौपई कहो भाट, पदमावति-लख्खन, गुणी सरस तुम बड़े विचल्खन, रंग-रूप-गुण-गति-मति दाखो,भाखा सकल मधुर-सुर भाखोहि।
कवित्त
पदमावति मुखचंद, पदम-सुर वास ज आवे, भमर भमत चिहुँ फेर, देख सुर असुर लुभावे । अंगुल इकसत आठ, ऊँच सा सुन्दर नारी, पहुली सत्तावीस, ईस चित लाय सँवारी। म्रगण, वैण कोकिल सरस, केहरि-लंकी कामनी, अधर लाल, हीरा दसन, मुँह धनुप, गय गामनी ॥ १० ॥