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१८० ] [ रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रासो करी मृतक्रत देही संसकार, आयो वादल निज घर वार । रजपूता ए रीत सदाइ, मरण मंगल हरखित थाइ ।। ४७॥
दूहा रिण रहचिया म रोय, रोए रण भाजे गया। मरणें मंगल होय, इण घर आगा ही लगें ॥४८॥
चौपाई विरूद वोलावे वादल घणी, साम सनाह सुहडाई तणी। इसो न को बलि हूओ सूर, कमधज वंश चढायो नूर ॥४६॥ पदमणि राख राण राखियो, गढ़रो भार भुजे जालियो । रिण भिडता राखावी रेह, वसो वसो वादल गुण गेह ॥५०॥
कवित्त जय वादल जयवंत, विरुह वादल अरिगंजण । संकट सामि सनाह, भिडे पतिसाहा भंजण । मलण मलीका माण, हणण हाथी मय मत्तह । साम बद छोडणो, दियण वहिनी अहि वंतह । पदमणी नार श्री मुख कहें, इस्यो अवर न कोई हुआ। आरती उतार वर तणी, जे वादल जेवत तुह ।।५।। कहे मात वाढला, भलें सुझ उअर उपन्नो।। कुल दीपक कुल तिलक, रक घर रयण संपन्नो। ग्रहि मोखग पतिसाह, रुक वल गंजण अरी दल । जैत हत्थ जग जेठ, भुज वलिहार भुज बल। १ लाजियो २ नमो नमो