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१७८ ] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो
चोपाई महा महोछव माहें लियो, अरध राज वादल ने दियो । पदमणि नार लिया वारणा, राख्या पण अम दंपति तणा ॥२६॥ इण पर आव्यो महिल मझार, वदीजन वोलें जयकार । आवी लागो माता पाय, मात आसीस दिइं असवाय ॥३०॥ निज नारी ओढ़ी नवी घाट, सभि शृंगार कर तिलक ललाट । अरघ अभोखों देंई करी, मोती थाल भरी संचरी ॥३१॥ कीधा विविध वधावा घणा, कुसले खेमे आया तणा। तव गोरिल री अस्त्री कहें, काको किण विध रण मे रहें ॥३२॥ कहो किसी पर वाया हाथ, केता माऱ्या आलम साथ । वादल वोलें माता सुणो, किंसु वखाण काकाजी तणो ॥३३।। असपति पिण पग पाछा दिया, जत तणा वाजा वाजिया। बीछाया सब खान निवाब, के उसीसे के पयताव ॥३४॥ ऊपर गोरो भिड पोढ़ियो, अवर सुजस तणो ओढियो। तन विखरायो तिल होय, मुछा मरट न मिटियो तोह ॥३॥ कुल उजवाल्यो गोरें आज, सुहडा सीधा चढ़ावि राज । रिण खेती गोरे भोगथी, में तो सिलो कियो पूठथी ॥३६॥ घटा वींदणी गोरे वरी, बाधे मोड महा रिण करी। में तो जानी थकेह मविया, विरुद भुजा छे गोरल लिया ॥३७॥
कंडलियो गोरल त्रिय इम उ [८] चरें, सुण वादल समर त्] थ । पिउ मुम रिण मे झूझते, किम करि वाया ह [न] थ ॥