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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रासो] [१६६ यह बोलें हम होवें खमी, पदमणि न्याय कहीजें इमी। हुकम दियो आलम ततकाल, छोड्यो रतनसेन भूपाल ||४|| वादल माहें छुडावण गयो, रांणो रूम अपूठो थयो। फिटरे वाद ल] मुहम दिखाल, सवल लगावी मुझने गाल४!! वरी वर घणो ने कियो, पदमणि साटें मोनॅ लियो। खत्रीवट मांहें नाखी खेह, खत्री निसत थया सवी गेह ।।५।।
कचित्त फिट वादल कहे राव, वाच चूको हिंदवाणह । खत्री ध्रम लजीयो, मिट्यो भिड मान गुमांनह । सांम ध्रम लोपीयो, लण तामीर न कीनी। जीवत शमले खाल, नारी असपति कुं दीनी । कहा कर म्हें परवस पड्यो, वाच लोप आलिम भयो। सत छोड कितो अव जीवहें, तवहीं नीर उतर गयो ।।५।। कहें बादल सुनि राव, वाच हिंदवाण न चुक्कहीं। खत्री भ्रम ऊजलो, सुहड धीरज न मुक्कही ।। सांम ध्रम रख्खहें, जम सवहीं कु प्यारो। भुगतिहो गढ चितोड, इला कीरत विसतारो।। मकर हो] सेव अमपनरी, असपति साहिली मेलियो। महिमान मान दीजें सदा, करहुं आद पुत्व कह्यो ।।२।।
महिल अगनीत गढमधर, ग्रही तस राज गहिल्ल । उस आलम कित हीर सं, सब विध होय सहल्ल ॥ ५३ ।।