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१६८] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो
पण सोहागण मुझन करें, एह अरज मन मांहें धरे । एम सुणि ने आलिम कहे, पदमणि आपें आदर लहें ॥३७|| पदमणि नारि तणा नख एक, तिण सरीखी नहि नारी एक । पदमणि कारण म्हें हठ कियो, वयग लोपि रांणो अहि लियो ३८ मुझ मन खात अछे तिण तणी, मानीती करस्यु पदमणि । अवर हुरम करसी पग सेव, पदमण कुपधरावो हेव ।।३।। एम कही वलि वादल भणी, परिघल दीधी पहिरावणी। ते लेइ वादल आवियो, पदमणि नारी वधावियो ।॥४०॥ सुभटा ने सहु भाखी वात, जई मेलावस्यु धातो धात । तुम सहुँ वाह रहेज्यो इहा, वात रिखे को [इ] काढो किहां।।४१॥ आयो बादल असि पर चढ़ी, नव नव वात कहें मन घडी । हो, बुद्धि वसे तेहने, कसी उणारथ छे जेहनें ॥४२॥ वात कहता लागें वार, फिरि वादल आयो तिणवार । परगट आण धरी पालखी, आलिम देखें सहु सारिखी ॥४३॥ वादल विच विच में वलि फिरें, पदमणि [ने] मिस वाता करें। रह्यो पहर दिन एक पाछलो, लसकर दूर गयो आगलो ॥४४|| किला तणी जब वेला भई, तब तिहा वादल बोलें सही। हजरत एम कहें पदमनी, मुझ ऊभां थई वेला घणी ॥४॥ म्हारी एक सुणो अरदाश, जिम हुं आवं तुम आवास । रतनसेन मुको इक्रवार, तिससे वात कम दोय च्यार ४६|| ले राजा आबु दरवार, जेम रहें कुलनो आचार । आलम वोले सुण वादला, पदमनि बोल कहया ते भला ॥४७॥