SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७०] [ रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो राख रजा सिर राम की, धरि मन उमग उछाह । राज पधारो चित्रगढ़, सब विध होसी स] लाह ॥५४|| कवित्व जात आदि अक्सरा राव करहुं मन ग्यान, जवनपती हठ हमीरह ।। गुमर किए रस नहीं, ढलकी अजलियह नीरह ।। परा लेखयो कछ धात, निम्यो निस छति रोस छडिइ । डाव विन चाव होवें नही, वाचहुं पढमख्खर हीइ ॥५॥ चौपाई भूप प्रीछ उठ्यो तिणवार, असपति वोलें चित्त अपार । पदमणि ने मिल आवो जाय, पीछे सीख दीए हित भाय ॥५६। राजा चाल्यो पदमणि भणी, सुखपाला देखी घण घणी। पेंठा माहि जिसें पालखी, वाच सहू साची तब लखी ॥५॥ वादल बोलें राणा सुणो, अवसर नही ए वाता तणो । __ एक थकी बीजी अवगाह, गढ लग पहुंचो मविका मांह ।।५८।। स्वामी थाज्यो धणु सजेत, माहें जई कीज्यो सकेत । साचो कीनो ए महिनाण, दीज्यो डाका जेंत निमाण ।। ५६ ।। रतन तुंहार वखतें सही, मत्र भेद पिण हुओ नही। सांमधरम नें सत परिमाण, गढ रहियो में छटो राण ॥ ६०॥ एम सुणी राजा रंजिओ, साई सफल मनोरथ कियो। कुसल खेम पोहंता गढ़ माह, नाणक सूरज मुक्यो राह ॥६॥ कुसल तणा बाजा वाजिया, तव ते सुभट सहू गाजिया। नीसरिया नव हत्त्था जोध, माण दुसासन र विरोध ॥६२।। -
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy