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________________ १६६] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल सबन्ध खुमाण रासो हुँले आवेसु राजान, पोहचावेस्यु नृप निज थान । पछे करेस्या सवलो कलो, ए आलोच अछे अति भलो ॥१३॥ सुभटे सगले मानी वात, परठ करता थयो प्रभात । भेद सहू समझावी घडी, चाल्यो वादल चंचल चडी ॥१६॥ पोहतो जाय लसकर माह, जहा वेठो छे आलमसाह । जाए वादल करी सलाम, हरखित बोलें असपति ताम ॥१णा वादल साचा कह सदेश, वगसं बोहला तोने देस । वादल अरज करें परगडी, स्वामी वात सिराडें चढ़ी ॥१८॥ कटक सहू समझा नीठ, पदमणि आणी गढ़रें पीठ। सुहड सहू भाखें , ऐह, निसुणी स्वामी विनती तेह ।।१६।। पदमनि सुं ज्यो , तुम काम, तो हिवें राखो मामो माम । अतरो हुवे हमकुं [वे] वैसास, पदमणी आणु जिम तुम पास १२०॥ असपति बोले वलतो एम, कहो विसवास हुवै तुम केम । वादल कहें श्री आलम सुणो, विदा करो लसकर आपणों ।।२१।। सुहड सहू बोले छ मुखें, वेही स्वारथ चूको रखें। पदमणि लेइ न छोडें राव, रखे उपावो असपति दाव ।।२२।। पहिली पण कीधो में कूड, तिण वैसास मिल्यो छे धूड । तिण कारण कहु आलम साह, लसकर सबही करो विदाह ।।२३।।. जो वलि वीहो तो असवार, पासें राखो सहस वे च्यार । अवर द्यो सहुं आगे चलाय, जिम विसवास अमां मन थाय २४ इम सुणीने थयो उतावलो, वोलें आलम अति बावलो। हम अवीह वीहें किस थकी, वादल एसी तें क्या कथी ॥२॥
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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