________________
. रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संवन्ध खुमाण रासो] [१६५
रीम मोकली निज घर ज्यार, माता हरख थई तिणिवार । देखी साह तणो सिरपाव, देखी सूरातम दरियाव ॥ ५॥ गोरो रावत मन गहगहयो, करसी वादल सगलो कह्यो। हरखित नार हुई पदमणी, ए मेलवसी सही मुझ धणी ॥ ६॥ सुभट सहू चमक्या मन माह, वादल माहे अधिको आंह । सगत न छानी राखी रहें, वाधी अगन हो तो दहें ॥ ७ ॥
दूहा विधना ज्यां वुहि गुण दियो, नित दो मति मन मद । जे कुंडे किम छाइए, छिप्यो रहे कित चंद ॥ ८॥
चौपाई वादल वम कीयो मंत्रणो, कहुं वात तें सहु को सुणो। वीस सहम सझ कगे पालखी, वात न किणही जाई लखी॥६॥ ऊपर अधिक करो ओछाड, पाखतिया बाधो पतिवाड । दो दो सुभट रहो मा माह, वाधी सस्त्र सलह संन्नाह ॥१०॥ लागे लार करो पालखी, कहमा माहें छे तसु सखी। विचे पालखी पदमणि तणी, परठी सोम करो तिण धणी ।।१।। साचो पदमणि रो सिंगार, ऊपर थापो भंवर गंजार। तिण मे रावत गोरो रहो, वात रखें कोई वारें कहो ||१२|| छेटी बिचें न राखो रती, लारो लार करो पागती। गढरी पोल ममी वार, सेन समीपं आणो पार ।।१३।। एम करी हिवें तुम आवज्यो, वेला वहुली पडखावज्यो। हुं विच जाय करु छ वात, मिलस्यां जिम तिम धातोधात ।१४॥