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________________ १६४ ] | रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संवन्ध खुमाण रासो कामण वाण कुण सहि सके, दामें सारी देह । । सुन्दर तणा संदेसडा, निपट वधारें नेह ।। ६५ ।। वार वार चुंबन करें, रुका कुंमुखलाय । अजब पढी है पदमणी, खूब लख्या ए माह ।। ६६ ॥ असपति थो अहि सारिखो, सही न सकंतो कोय । खील्यो बाढल गारुडी, पदमणि मंत्र परोय ॥१७॥ चौपाई असपति बोलें बाढल सुणो, तु मेरें वल्लभ पाहुणो। भगत जुगत केती कहजीई, तेरी अकल वसी मुझ हीई ।। ६८ ॥ पदमणि सुकहियो मुझ प्रीत, रुडी पर भाखें सहुरीत । जो हम हाथ आई पदमणी, तो तुम कुंघु धरती घणी ।। ६६|| सुभट सहू समझा घणा, थिर कर थाप ए मंत्रणा । तुझ नु करस्यु देशज धणी, दूध डाग दिखलावे घणी ।।२७००।। इस कही कर सुती निज नाह, पहिराव्यो वादल पत्तिसाह । लाख सोनिया दीधा सार, हेंवर गेवर देश अपार ।। २७०१ ।। रुका लिख देहुं तुम हाथ, माहें लिखहुं प्रीतम गाथ । रुका ल्यु नहि आलम तणा, कोइ वाचें तो भाजे मत्रणा ।। २॥ मुख सुवात करूंगा घणी, विरह वात सहु आलम तणी। मुझकु सीख दीयो सुपसाय, आलम साह दीयो पहोचाय ॥३॥ सोवन पोट हमाला सिर, हय हीसे घंसारव करें। इण पर आया चित्रगढ़ माह,,पूछे वात सहू परचाह ।। ४ ।।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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