________________
रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो] [१६१
आलिम मांने मुझ मत्रणो, तो उपगार करुं हुं घणो। जाय न किम आलम सुं कह्यो, इम निसुणि असपति गहगह्यो ६ माहें तेडायो देइ मान, दीठो असपति भिड असमान।, । तेज तेख दिनकर थी घणी, हुकम कियो खुस बेसण भणी ||७०) बठो बादल बुद्धि निधान, असपति पूछे करि वहुमान। . क्या तुम नाम कसी का पून, अब किसका हे ते रजपूत ||७१।।। क्या तुमको हे गढ़ मे प्रास, को अव आए हो अब पास । बोलें वादल वलतो हसी, रोम राय घट सहू उगसी ।।७२॥ अवसर बोली जाणे जेह, माणस माहें जणावें तेह। । । विनय करें कर जोड प्रमाण, करिहुं अरज पाऊ फुरमाण ।।३।। नाम ठाम सहू विगतें कह्या, महरवान तव आलम थया। बादल बोल्यो,साहस धरी, स्वामी वात सुणो माहरी ।।७४|| पदमणि मुक्यो हुपरधान, सुहड न मेंले निज अभिमान ।' ! पदमणि देख्या तुम कु हेठ, भोजन करता लागी देठ १७ , तिण दिन थी ते चिंते इसो, कामदेव वलि कहीइ किमो। धन तस नारि तणो अवतार, जिसके आलम हे भरतार ।।६।। विरह विथाकुल वेठी रहें, अहनिस सुहिणे आलम लहें। निपट वणा मु के नीसास, अवला दीसें अधिक उदास ॥३७||
आलम आलम करती रहें, मुख करि वात न किण सुकहें । मुझ तेडी ए दाख्यो भेद, मुक्यो करवा विरह निवेदः ||७६;