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________________ १६०] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल सबन्ध खुमाण रासो पदमनि घा तो छूट पास, नहितर गढ़री केही आस । गढ जाता कोई न वि रहें, वले करा जे तु कहें हिवे ॥६॥ वादल वाले भलो मंत्रणो, तुम आलांच किया छ घणो । पटमणी आपं देस्या नही, गढपति ने छोडावा मही ॥६॥ इम करता जे आवा काम, कुलपट रहसी नामी नाम । काया साटे कीरत जुडे, [तो] मोले मुंहगी नवी पड ॥१२॥ दोहा मीह न जोवे चंदवल, नवि जावें घर रिद्ध। एकलो ही भाजे किलो, जहा साहस तिहा सिद्ध ।।६।। चौपाई मूरातन चित धीरज ज्याह, परमेसर त्या आवे बाह । तिवें आदरज्यो सतध्रम तणो, सुहडा धीरज दीज्यो घणो ॥६४। हु जाउंछ लसकर माह, आयु वात सहू अवगाह। करि जुहार बादल अश्व चच्यो, साहस नूर सूगतम चड्यो ।। गढ़री पोल हुती उतत्यो, बुद्धिवंत में साहम भयो। निलवट दीप अविको नूर, प्रत तेज घणो घर पूर ॥६५॥ सलहें अग सझ्या सावता, पहिर्या वस्त्र भला फायना । आव्यो एकल मल असवार, जाणे अभिनव इन्द्र कुआर।।६।। आवत दीठो आलम जिसे, ए आवे हैं कारण किस। पूछण मुक्या सामा दून, क्यु आवत हे ऐ रजत || आयन किमे पूग्यो तेह, बोलें बादल अती सनेह । आव्यो एक कहेवा वात, पदमणि आंण देऊ परभात ॥६॥
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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