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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रासो ] [ १६३ में तेरी पग दास, में (हूं) तेरी गुण वदी। तुम रहिमान रहीम, मे हुँ त्रिय आव मगी दी। में तो यह पण किया, सेज आलम सुख माणु। ना तर तजिहुं प्राण, अवर नर निजर न आणु। अब करिहुं[ वहु] राज मानहुँ अरज, हुकम होय दरहाल इह । में आय रहुं हाजर खडी, छोडि देहो हिंदवाण पह ॥ ८७ ।।
चोपाई जब भेज आलिम परधान, चो पदमणि छोड़ें राजान। सुहड कहें वलि मरसा सही, पिण पदमणि को देस्या नहीं ॥८८|| मे समझाय सुभट सामंत, वीरभाण कुंअर जगजंत । क्यु क्यु आज ठवं छेकान, तिण जाणु छू विणसे वान ।। ८६ ।। पदमणि मुक्यो हुँ तुम भणी, विनय भगत विनवें घण घणी। वलें जिका होवें छे वात, आवे कहेस्युते परभात ॥१०॥ सीख दियो पत्री पढि सही, पदमणि पासे जाऊं वही। जोती होसी म्हारी वाट, करती होस्ये अति उचाट ॥६१ ।। विरह विथाकुल न ख] मे विरहणी, काम पीड दाहें पदमणी। तुम संदेस सुधारस जिसा, पाउ जाइ कहुं तिहा तिसा ।।२।।
दूहा असपति इण पर सांभली, पदमणि प्रेम प्रगास । वयण वाण वेध्यो घणो, मुके सवल निसास ।।१३।। पत्री वाची प्रेम सु, चतुराई सु- विचार । कागद कर मुके नही, नयण लगाई तार ।। ६४ ॥