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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो] [१५१
अस्त्री आंण दिया हथियार, सभी आऊध उठ्यो तिणवार। 'विनय करी माता पग वंद, चंचल चढ़ि चाल्यो आणंद ।।।। गोरा पासें आयो गहगही, काका धीरप राखो सही। एक वार देखुपतिसाह, देखु कुंअर तणो पिण माह ॥५०॥ कहें गोरो वादल सुण वात, मुझ तुम एक अछे संघात । तु जावें हुं पाछे रहुं, ए वातें किम सोभा लहुं ।।१।। काका न कीजे काची वात, हूं जावुछ मेलण घात। रिणवट्ट मुझ तुझ हे साथ, इण वातें मुझ देखण हाथ ।।२।। गोरो रावत राखें घरें, वादल चालो साहस धरें। सुभट सहु मिलिया छे जिहा, वादल रावत आवे इहा ।।३।। सांमधरम सरणे साधार, रिम दल गाहण सवल अपार । जाणे कुल कीरत धन धस्यो तेज-पूज सूरज अवतर्यो ॥४॥ सभा सह देखी खलभली, सूरातम सामंत अटकलि । वादल कवहि न आवें सभा, ग्रास न लामें नहि घर विभा ॥५॥ सकें तो काइ विमासी वात, गाजण सुत ए सूर विख्यात । सुभट राय सुत वेठा जिहा, कियो जुहार आवी ने तिहा ॥५६॥ उठ सुभा सहू आदर दिए, बेंठा वादल तव दृढ़ हिए। पूछे सुभा प्रयोजन आज, कहो पधाऱ्या के काज ।।५णा बादल बोलें वहिसे इमो, कहो तुमे आलोचो किसो । सुभट कहें वाढल सभलो, सबल मंडांणो इण गढ किलो ॥५८|| अडियो आलम अवलीवाण, गढ़पति ग्रहियो रतनीस राण। गढ़पिण लेस्य हिवडा सही, द [ल] ली पत वेठो हठग्रही ॥४॥