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________________ रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रासो] [१५७ सवी श्रृंगार सझे मात्रता. पहिरी वस्त्र भला भावता। हाव भाव करें वचन विलास, जिण पर तिण पर पा. पास ॥२।। एम सुणि बहूअर नीकली, झवकती जाणे वीजली । सकुलिणी सम सोल शृंगार, आवे वेगि जिहा भरतार ॥३०॥ ल्प रंभ जिसी राजती, मृगनयणी सुन्दर गजगती। नयणे निरमल देख्यो नेह, सामधरम दाखें ससनेह ॥३॥ कोमल वदन कमल कामनी, दीप दत जिमी दामनी । हस्त वदन बोलें हितकरी, स्वामी वात सुणो माहरी ||३२|| आलिम दूठ महा दुरदत, कहीने किण पर जूझो कन । अरि बहुला ने तु एकलो, इसे मतें नवों दीसें भलो ।।३।। ते हुं पुरख नही वादलो, जोए जिण पर माडु किलो । वलती अरज वली [] इसी, जात नहीं छ जोवा जिनी ॥३४॥ हीसे खेंग सीधुर सारसी, गलबल डूगल करे पारमी। सोखें खिण इक माहें तलाव, मुख मकड चित दुष्ट सुभाव ।३५॥ भुरज उडावे दे दे ढ़ला, मास भखें बाणे अलरला । उडता पंखीया हणे, बाले वाधी कोडी चुणे ॥३६॥ गदल वाले वलतो हसो, ते ए वात कही मुझ किसी। हवर गेवर पायक पूर, एकण हाक [क] रुचकचूर ।। ३७ ।। दूहा इह त्रिय सुणि वादल वयण, जंपें तीय जुबान । निया सैम गजी नहीं, किम गंजसी सुलतान ॥ ३८ ॥
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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