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१५६ ] । रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो
पकड्यो राव परहत्थ, कत्थ न हुं झूर करीजें नहि सामंत तुम भीर, झूझ कहा सोभ लहीजें। रढ़ चढ़ हुं लहु बालक जिम, कहें बालक दुख क्यु धरूं। साह ए समु द सुलताण दल, भुजवलि जिम दुतर तरहुं ॥२४॥ कहें वादल सुण मात, कहा फिर फिर वाल (क) कह । जेठी नट जूझार, दाल गायण हे पायकह । वस्त्र सस्त्र कवि रुप, गयंद त्रिय गाह कवित्तह । एते सब बालक्क ह], मोल मुंगा जिन तन्नह । वालुए कान काली दिख्यो, वाले गज देसीस दिय। अरि सेन चाव बालक्क जिम, देखि ख्याल करी दृढ़ हिय ॥२५॥ कहें वादल सुण मात, देखी एह घात विचारी। प्रथम सामी साकडे, कष्ट भुगतहि तन भारी। असपती गढ़ विग्रहो, रह्यो न सुहडा धीर [ज | ज । राजकुमार बाल [क] क, तास निज नाही स वीरज । पदमणी मुझ पयठी सर ण ण पेख्ख विचरखन वात सब । निज वंस अंश ऊजल करण, इह अवसर फिर मिलहि कव ॥२६॥
चौपई
सुतनो सूरपणो साभली, माता मन माहे कल मली। वरज्यो वचन न मानें रती, तब गई मेली मेठलवती ॥२७॥ वात सहू बहू अरनें कही, जई राखो निजपति ने ग्रही। ' म्हारी सीख न माने तेह, रहेंसी भेट तुमारो नेह ॥२८॥