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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो ] [ १५५
चौपाई सीह सवद सुण मेयगल घटा, नासें सगला तेपिण कटा । जिम आलम भांजु एकलो, गढ़ चीतोड़ दिखाउं भलो ।।२०।।
एक संहेस एकलो, एक एकला घणाह । सींघ सहेसें चोटियो, जोखे जणा जणाह ।।२१।।
कवित्त
रे वादल कहें मात, वात वीछ करारी। परिहर मन अभिमान, बोल बोलहुं विचारी। सुभट होयें दसवीस, तास वलि आरंभ कीज्य । आलिम साह अथाह, समुद किम वाह तरीज्य । वालक गत ओछलि, जूझ बूझ जाणे नही। मुझ वयण मान सुपसाय कर, तो सुपूत वादल सही ।।२२।। हुं कित बालो माय, धाय आचल नवी लगु । हुं कित बालो माय, रोय नही भोजन मग्गू हुं कित वाली माय, धूलिढिग माँहि न लोटु हु कित बालो माय, जाय पालणें नही पोदु। जा जुल नाग आलम जुवन, जास जुद्ध छोड़ ग्रहें। रण खेल मचाऊ बाल जिम, नही माय बालो कहें ।।२३।। तव फिर जपें माय, वात सुन पूत अधीरह। गढ रोक्यो असुराण, सुभट सवल ए अधीरह।
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