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१५४ ] [रलसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध माण रासो
गोरो सामलि गहगह्यो, सूरिम चढी सरीर।। कायर पूता काप. सूर धरावें धीर ॥१०॥
चौपाई पदमणी घरें पधारी जिमें, बादल माता आवी तिसें। सुणल्यो सगलो ते संकेत, हिवड़ा माह न मावे हेत ॥११|| नयण मरं मके नीमास, माता दीसें अधिक उदाम । इण पर आवी दीठी मात, विनय करें पूछे सुत वात ॥१२॥ किण कारण तू माता इसी, कहो वात मन मान तिमी। आरत केही , तुम तणे, क्यु को चित्त आमण दुमणे ॥१३॥ मात कहें सुग वाढल बाल, मांडे कांय लीयो जंजाल । दूध दही तुं माहरे एक, तुम विण कोई नहिं मुझ टेक ॥१४!! यणा खाए मेगलिया ग्राह, सुहड़ रह्या छतिके विमाह । मासन वास नहीं नृप तणो खरच खावाला निज गाठनो॥१शा रिण विध किम जाणेस्यो सजी, घर विध बात न जाणो अजी। कहि कीधा छ तें संग्राम, अणजाण्या किम कीजें काम ॥१३॥ आलिम किण पर गज्यो जाय, आटें लंण किसा ने थाय । वादल पूत अछे तुं बाल, रिण संग्राम तणो नहि ताल ||१|| अलगा डुंगर रलियामगा, हुंस हुवे अण दीठा तणा। जुद्ध तणा मुख भला अदीठ, वात करंता लागे मीठ ||२८||
यतः दूहा दुगर अलगा थी रलियामणा, दीसें इसरदाम । नेडा जाय निरखिजें जदी, कांटा भाठां ने घास ॥१९॥