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१५२] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खमाण रासो
विनयवत करि पग परिणाम, काका ने बलि कीध सलाम । गोरो जरें बादल सुणो, संहडे थाल्यो ए मंत्रणो ||६ पदमणि देई लेस्यां राव, अवर न कोई चितें दाव । पदमणि आया आपण पास, आणी आमा मन विशवास ।२। हवे तुजेम कहे ते करां, नीची देता लाजे मरा।। आ डीले छा दो जगा, आलम साथे लसकर घणा ॥३॥ कहो जीपेस्या किम एकला, किला न होव कदही भला ||४|| तिण कारण तो पूछण भगी, आव्यो साथ ले पदमणी । हिवें करवो रणवट ने ठाह, आप वेहु भुजे गजगाह ।।६।। पदमणि वादल सुइम कहें, सरण आवी हु तुम तणे। राखि सको तो राखी मुज्झ, नहि तर तेहिवां दाखो मुझ ।।६।। खाडुजीह दहुँ निज देह, पिण नवि जाउं असुरा गेह । लाखा जु हर करिने वलु, पिण नवि कोट थकी नीलु ॥७॥ सील न खड्डु देह अखड, जो फिर उलटे. देह अभग । सुहड करावें वलि भरतार, मुझ कुल नहीं. हे ए आचार IIE८|| सील प्रभावें होमी फते, रिपुदल लागो म बों मते । रहें [अ] गढ़ में छूटें राय, हुँ पिण रहुं सुजस जग थाय !HERI परमेसर पिण माहस साथ, अंत हथा करसी जगनाथ । लहो सोभाग दीधी आसीस, जीतो वादल कोड वरीस २६००
कवित्तः । कहें पदमनि आसीस, अखें वादल अजरामर । तु मुझ पीहर वीर, धीर चित मोरी चरावर।