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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो ] [ १५१ मुभटें सगले दीधी सीख, दया धरम री नहिं आरीख । मीख दियो हिवें तुमें पिण सही, जिम असुरा घर जाऊं वही ८३ सुभट सवें हुआ सतहीन, प्रथवी खत्रीवट हुई खीण । सुभटे सगले दाख्यो दाव, पदमनी दे ने लेस्यां राव ॥८४|| हिवें तुमे सीख दिइयो छो किसी, कहोवात अधिकाई किसी। गोरो जपें सुण मुझ मात, होसी सघली रुडी बात ।।८।। जो तुम आया मुझ घर वही, तो असुरा घर जास्यो नही। रजवट तणो नहीं संकेत, नारी देई कीजें जैत ॥८६॥ वलि मावो रजपूतां भलो, आमों सामो करवो कलो । स्त्री देइ ने लीजें राव, सकज न थाइ एह कुदाव ।।
कवित तुं रजधर गोर [ ल्] ल, तु ही सामंत सक [ज] जह । तु ही पुरस हिंदवाण, रांग धर सहु तुज भुज] जह ।। वीरधीर बडवीर, तु ही दल वीडो झलें। तुं मुझ दें अहेंबात, नारि पदमणि इम बोलें।। सुहडा अवर सतहीण सवे, यह जस तो भुजे हेकिलो। अलावदीन सुखगांवली, हींदूपति छोडाविलो ।।८८॥
चौपाई गोरो जपे सुण मोरी वात, गाजण हुँता वडा मुझ भ्रात । तस सुत वादल छे बलवंत, तेहने पण पूछों ए मन ।।८।। तव पद मणि गोरल ससनेह, पोहता जइ वादल रें गेह । देख आवती थयो मन खुशी, वादल सांमो आयो हसी ॥१०॥