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१५०] [ रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रासो
चौपाई अवसर इण हुओ जें जेह, थिर मन करिने सुणज्यो तेह । तिण गढ़ गोरो रावत रहें, खित्रवट तणी विरुद भुज वहे ||७३।। तास भतीजो वादलराव, सर तानें भरिया दरियाव । ते वेवे छल बल रा जाण, वेवे रावत वे कुल भान ||४|| पिण तेहनें नहि सुनिजर स्वाम, रोकड़ ग्रास नही को गाम । घरे रहें न करें चाकरी, रतनसेन मुक्या परहरी ।।७।। रावत वे जाता था जिसें, गढ रांहो मंडाणो तिसें। रुधेगढ़ नवी जाइतेह, जाता खत्रवट लागें खेह ||६|| तिण [रे] कारण अहिरहिया टेक, हिवें जास्या काइ हुआं एक । अंग तणो न तजें अभिमान, सूर महावल जोध जुवान ||७|| खत्री सोहि खत्रवट चलें, मरण हीए पिण नवि नीकलें। भुंडां भला पटातर जाम, खाया जेम हुवे खगजाम ||७८| पिण तेहनें नवि पूछे कोय, जो पूछे तो इम काइ होय । जाणहार हुवें धरती जाम, सझ जोचंता राखे जाण ||ver चिते चितमांहें पदमणी, गोरो बादल सुणीजें गुणी । त्यांसुजाय करु वीनती, बीजां माहि न दीसें रती 11८०॥ इम आलोची पदमणि नार, सुखपालें वेठी तिणवार । आवी गोरल रें दरबार, साथै सयल सखी परवार ॥८॥ गोरो सांमो धायो धसी, विनय करी ने आयो हसी। मात मया बहु कीधी आज, भले पधास्या दाखो काज ||