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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रासो] [१४७ कुमती रतन कहीए राण, तेड्यो गढ़ माहें सुलतांण । गढ़ उतरे पहुंचांवण गयो, करे तोत रतन पकडीयो ।।५।। राजा तो पडिया तिण पास, असुर तणो केहो विसवास) पकड यो नृप पदमणि पिण ग्रहें, गढ़ चीतोड-हिवें नहीं रहें ॥५६॥ जसवंत ठां जुडि दरबार, जालिम तेड़ या सह जुमार। मांहो माहें करें आलोच, गढ़ मे हुओ सवलो सोच ॥५७।। एक कहें लडां भूभागढ़ माह, एक कहे घो राती वाह। एक कहें अधिपति सांकड़े, लडता जेहनें भारी पड़ें ॥१८॥ एक कहें नायक नहि माह, विण नायक हतसेन कहाय । एहवो कोइ करो मत्रणो मान रहें हींदु ध्रम तणो ॥५६॥ इम आलेचे सामंत सहू, चिंत उपजी चित में वहू । तितरें आयो इक परधान, हुकम करें , इम सुरतान ॥६॥ तेड्यो माहें नीसरणी ठवी, मंत्री माहें बुध जाणंग की। इम जपें छे आलम साह्, तुमे कहो तेहनें चू बांह ॥६१।। हमकुं नारि दीयो पदमणी, जिम म्हें छोडुगढ़ का धणी। एम कहेने गयो प्रधान, सवि आलोच पड्या असमान ॥२॥ कहो हिवें पर कीजें किसी, विसमी बात हुई या जिसी। जो आपा देस्या पदमणी, तो रिणवट न रहे आपणी ॥३॥ विण दीधा सवि विगसें वात, पदमनि विन न मिले कोइ घात। ऐतो जोरें लेसी सही, जे आया , इण गढ़ वही ॥४॥