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१४६] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रामो rrrrr ~ ~~mrrrrr
दूहा सोरठा असपति अव सरीख, रुखा पुरखा राजवी । मुह मीठा उर वीख, कहो दई केम पतीजिइं॥४६|| नरपति अरि नाहर तणा, को विसवास करेह । जे नर क [च ] चा जाणीइं, आलम एम कहेह ॥४१॥ वैरी विसहर वाघ नृप, ग्रासी गढ़पति आप। छलबल ग्रहीइं दाव सही, कोइ न लागें पाप ॥४८॥ तुम हम महिमांनी करी, अब तुम हम महिमांन । यो पदमणि छोडुपरा, रतनसेन राजान ॥४६||
चौपाई सुहड़ हुंता जे साथ सवेह, तियां चढ़ाई रजवट रेह । आंण्यो पकड ललकर माह, रवि ने ग्रहियो जाणे राह ॥५०॥ वेडि घालि वेसाड्यो राण, जुलम अन्याय कियो सुलताण । राणो रतन हुँतो बलवत, पकड्या निवल हुओ ए तत ॥१२॥
यतः अंगा गमु गते शत्रु, किं करोति परि[च] छद[:]। राहुणा ग्रहते चढ़े, किं किं भवति तारके ॥५२॥
चौपाई सुणी सहू गढ माहे वकी, वात तणी विनठी वानकी । हलबल हुई सेहर बाजार, पकड़ागो राणो सिरदार ।।३।। तेड्या सुहड दशो दिश वली, सेन्या सघली गढ़ में मिली। कटक सझ्यो घण हील किलोल, सवलज ढाई गढरी पोल ॥४||