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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो ]
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हाथी घोडा दीक्षा घणा, सतोष्या मगला पाहुणा ।
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रतन सेन
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तुम महिमानी कीधी घणी, कोट देखावो तुम हम भगी ||३७|| नृप साथै थया, आलिम गढ़ दिखलावण गया । विषम विपम हुती जे ठोड, फरि देखाड्यो गढ़ चीनोड़ ||३८|| विखम घाट अति वाको कोट, माहें न[ही] देखे वाई खोट । गोला नाल वहें ढीकली, कदही कोइ न सकें नीक्ली ||३६|| गढ देख्या गढ़पति ग्रव गलें, एहवो कोट कही नवि भलें । इम जपें ही आलमसाह, तुम हो रतन हमारी वाह ||४०|| काम काज केजी हम भणी, तुम महिमानी कीधी घणी । आलिम रीफ दीई गहगही, सीख दीए वलि उभा रही ||४१||
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अधिपति कहें अधेरा चलो, मे ददार देखा रावलो । एम कही आवो संचस्त्रो, राणो गढ वाहिर नीरुस्यो ||४२॥ नृप मन मे नहि को (इ) छल भेद, खुरसाणी मन अधिको खेट । व्यास कहें ए अवसर अछें, इम मत कहियो न कहियो पछे । ४३ ॥
यतः
खड सूका गोड मूआ, वाला गया विदेश | अवसर चूका मेहडा, तू ठा कहा करे
||४४॥
चौपाई
असपति हलकास्त्रा, असवार, माहो माहें मिल्या जूकार । रांणो रतन झाल्यो ततकाल, विचली बात हुई असराल ||१५||