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१४४] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संवन्ध खुमाण रासो जाली माहें जोवे जिसें, व्यासें पदमणि दीठी तिसें। ततखिण व्यास इसुं वीनवें, स्वामी पदमिण देखो हिवें ॥२६॥ रतन जडित जे छे जालिका, ते माहें बैंठी बालिका । आलिम उंचो जोवें जिसें, पदमणि परतिख दीठी तिसें ॥३०॥ वाह वाह यारो पदमनी, रभ कि ना ए छे रुकमणी। नाग कुमा [f] र किना किन्नरी, इन्द्राणी आणी अपछरी ॥३१॥
कवित्त कहें साह सुनि व्यास कहा मेरी ठकुराई। में मदहीन गयंद मे बलहीन मृगपति । में वद्दल जलहीन, ( में हूँ) विजन विन लुहन । में हीरा विन तेज, में हुं योगी विन मोहन । विन तेज दीपक विण सूर दिन, कहा बहुत फिर फिर कहुं । नही जाऊं दल्ली विन पदमनी, फकीर होय वन मे रहुं ॥३२॥
चौपाई व्यास कहें साभल सुलतान, फोगट काय गमावो माण । धीरज धरि साहस आदरो, अवर उपाय वली को करो ॥३३॥ रतनसेन जो पाने पडें, तो ए पदमणि हाथें चडें। इम आलोची मेली घात, धीरपणा विण न मिलें घात ॥३४॥ इम करता जीम्यो सहु साथ, भगत घणी कीधी नरनाथ । श्रीफल देइ धात तंवोल, माहो माह किया रंग रोल ॥३॥ हिवें इम जंपें आलिम साह, मांहों माह झाली वाह। परिघल' दीधी पहिरावणी, जरकस ने पाटंबर तणी ॥३६॥