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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो] [१४३
देख देख सूरत सब तणी, कहें साह यह सब पदमणी। ऐसी महिरी एक अलाह, हमकु एक न दीधी नाह ।।२३।।
कवित्त कहे व्यास सुण साह, हे तारीफ पदमनी। आफताव महिताब, जिसी वद [ल] ल दामनी ।। सोवन वेल समान, मानसर जेही हँसनी। जिन (ज) तन कमल सुवास, तास गुन सेवही सुरधेन कलपवृछ जेहवी, मोहनवेल चिंतामनी। कवि लघु अक लिइक हे रसन, क्युं वनही सोभा घणी ॥२४॥ लख दस लहें पलंग, सोड सत लख सुणीजें । गालमसूया सहस, सहस गीदूआ भणीजें। तस ऊपर दुपट्टी, मोल दह लक्ख लद्धी । अगर चंदण पटकूल, सेझ कुकम पुट दीधी। अलावदीन सुलतान सुण, विरह विथा खिण नवी खमे। पढमणी नार सिणगार सझ, रतनसेन सेमें रमे ।।२।।
चौपाई अवर न देखें पदमनि कोय, जे देखें तो गहिलो होय । पदमनि पुन्य पखें किम मिलें, जिण दीठे अपछर अब गले ॥२६॥ इम ते व्यास अनें सुलतान, वात करें छे चतुर सुजांन । तिण अवसर पदमणी चिंतवें, आलिम केहवो जो इम चवे ॥२७॥ तितरें दासी जपें एक, गोख हेठ वेंठो सुविवेक। तसुमुख देखण तव गजगती, आवी गोखें पदमावती ॥२८॥