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.१४८ ] [.रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो
कवित्त कहें कुंअर जसवत, सुनहो उमराव प्रधानह । रख्खहु गढ की मोभ, धरा रख्खहुं हिंदवाणह ।। हे राजा परवसें, नहे चल देखें भली। देहु नार पदमनी, साह फिर जावें दिल्ली ॥ गढ़ आय राण बेठही तखत, चमर ढलाव हीतूक धर ।। सिल हेठ हाथ आयो सु तो, छल हिकमत काढही सीपर ।।१।।
चोपाई सुभटे सघले थापी वात, हिवें पदमणि देस्या परभात । इस आलोची उट्या जिसे, पदमणि सवि साभलिया तिसें।
कवित्त
कहें, पढमनि सुनि सखी, वात यह कुमर विचारें। हम देई पतिसाह, धरा गढ राण उगारें। मे सींघल उपन्नी, राजपुत्री कहेवानी । गढ़पति रतन नरेश, भई ताकी पटरानी। अब बहुरि नामह किण विध करहुं, म्हे कुलवती कामनी। हिंदवाण वश लछन लगे, थूक थूक कहीइ दुनी ॥३॥ पढ़पति.पकड्यो साह, राह जिम चंद गरासे । विनु दोधे उगहेन, सुभट कहा और विमासें ह] भवति जोग कछु सु वो मिट नही अधीतह आप मुआ जुग वुडिहें, दुनीया नह उकत्तह ।