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१३८] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाणो रासो
मू कीजे पक्का परधान, एम कहावे द्यो हम मान । तेडी माह खवावो खाण, निजर देखावो आहीठांण ।।८६॥ पदमणि हाथ जीमण तणी, खाँत अछे म्हार्नु अति घणी। काई न मागे आलमसाह, छडा साथ सुं आवें माह ।। ८७ ॥
कवित्त
हमहि पठाए साह, कहण कुं कथ अवल्ली। जो तुम मानों वाच, साह फिर जावें दल] ली। दिखलावो पदमनी, और सब गढ दिखलावो। विग्रह को नवि करही, बाँह दें प्रीत वधावो। गढ़ देख मिलहि सिरपाव दें, बहुत मया आलिम कर (ही)। रतनसेन सुण (हो) वीनती, सुहर माह दुतर तरही ।। ८६ ।।
चौपाई बोल बंध द्यो साचा सही, वाच हमारी विचलें नही। नाक नमण करि कोट दिखाय, पदमणी हाथें मुझ जीमांय 180 माहों माह करे संतोष, हिव मेटो अति वधतो रोष । वलता कहें रतन राजांन, मा [ह] रां कथन सुणो परधान ।।१
कवित्त सुणि वजीर कहें राव, राम सिर पर राखीजें । वाको गढ़ चीतोड़, सगत सुलतान हलीजें। म करहो हठ गुमान, तुमहुँ साहिव तुरकाणे । रजधारी रजपूत, हमही साहिब हिंदवाणे ।