________________
रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो] [ १३६ क्यु कहें वहुत श्री मुख वयण, हम रखही घर अप्पणो। किरतार कियो न मिटें किण ही, त्याग खाग हिंदू तणो ॥ १२ ॥ कहें वजीर सुनिराव, तुमही क्या ओपम दीजें । तुम सूरज हिंदवांण साह कही एती कीजें। दंड द्रव्य नहिं पेस देस तेरा नहिं चाहु। नहिं हम गढ री प्यास, राजकुमरी नहिं व्याहु। करिहो न तुम करहि फरक्क, राज महल नहिं आहथु । करि नाक नमण करीई रयण, देख कोट' फिर वावडं ॥ १३ ॥ सुण हो बहुरि राजांन, इह हरजत फरमाया । पूछे ग्यान कुरान, तिहा एता दिखलाया। रतनसेन अ [ल] लात्र, पुव्व जन्मंतर भाई। म्हे तप किया असोच, तिण पतिसाही पाई। तें किया पवित्र दिल पाक तप, ही दूपत पायो जनम । हम तुम तेरो समा कुल ही, करत प्रीत रहीइं धरम ॥१४॥
चौपाई खेमकरण वेधक परधान, इम कही सघलि मेलीधान । हिंदू सदा निरमल दिल हुवें, घोलो सहु दूध ज लेखवें ॥६५॥ तेडी राण तणा परधान, पुहतो जई पासें सुलतान । दीधा बोल बाह सुलतान, हम तुम विचें ए छे रहमान ।। ६६ ।।।
श्लोक मुख पय दला कारं, वाचा चंदन शीतलं । हृदय कर्तरी तुल्यं, त्रिविधं धूर्त लक्षणम् ॥ ९७ ॥