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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संबन्ध खुमाण रासो ] [१३७
चौपाई गढ' चीतोड तणी तलहठी, इण पर आयो आलिम हठी। लाख सताविस लसकर लार, डेरा दीधा अति विसतार ॥७८|| धूस नगारें धूजे धरा, गाजें गयण अनें गिरवरा । हठियो आलम साह अलाव, गढ़ भंजण चित मन मे दाव । रतनसेन पण रोसें चढ्यो, पींधो आलम आवी पड्यो । सुभट सेन तेडाया सहू, वह से बलवंत आया बहू ।।७।। रतन सझ्यो गढ़ अवली बाण, छोडें नाल गोला ने वाण । रतनसेन बोले गजखंभ, हींदू धरम तणो उत्तंभ ॥ पतिसाही रणवट पाहुणो, भोजन जीमाडा खगतणो ।।८।। आ [व] ध नाना विध पकवान, आतस गोला खाग विधान । खाठी भगत जिमाडो इसी, खग व्रत मद धारा ना]
मोजसी ।।८।। इसो चखावो अजरोरु [क] क, फिरें न लागें रणवट भु[क] ख । आ पाखें अवर कुण इस्यो, झेले पाहुण आलिम जिस्यो ।।८।। उत अलाव इत रयण नरेश, हींदूपति ने पति असुरेस | माहो माहे करें सग्राम, मुगल पठाण वहु आव्याकाम ।।८३।। असपति कोइ न चालें जोर, रतनसेन राणो सिर जोर। द्ये ऊपर थी भिड मारिका, असपत्ति सहिवें फाटा बका ॥८४॥ कोइक तोत तणा करि मता, रतनसेन पकडा जीवता । वचन तणा दीजें वेसास, विण फदे पाडीजें पास ॥८॥