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१३६ ] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संवन्ध खुमाण रासो साम धरम ससनेहणी, अति सुकमाल सोहांमणी । कहें राघव सुलतान सुण, पुहवो इसी हे पदमणी ||७२।। धवल कुसुम सिणगार, धवल बहु वस्त्र सुहावें । मुत्ताहल मणि रयण, हार ह्रिदयेस्थल भावें ।। अलप भूख त्रिस अलप, नयण बहु नींद न आवें । आसण रंग सुरंग, जुगति सुं काम जगावें। भगति हेत भरतार सु, रहें अहोनिस रागणी। कहें राघव सुलतान सुण, पुहवी इसी हे पदमणी ।।७३।।
चौपाई पदमणि रा गुण सुणिया एह, जपें असपति सुंण अवेह । करुं चढ़ाई गढ चीतोड, अव हींदू कुनाखु तोड ॥४॥ पोरस आण लेऊ पदमणी, रतनसेन पकडुगढ धंणी। दोडाया कासीद सताव, तेड्या मुगल पठाण नवाव ।।७।। निरमल जोधा जें सम किया, आधी राति दमामा दिया। सवल सेन सु आलिम चढ्यो, धर धूनी वासिग धड़हड्यो ।।६।।
कवित्त हसि वोल्यो सुलतान, माँण कर मुंछ मरोड़ी रतनसेन कुंपकड़, चित्रगढ़ नाखु तोड़ी। . हय कंपें चक च्यार, थरकि जलनिधी अकुलाणों। सरग इंद खलभल्यो, पड़ यो दस दिसीह भगाणों ।। फरवाण देस दिसहि फटें, सब दुनियाण असी सुणी। मारिहें रतन हिंदुआंणपति, साह पकड़िहें पदमणी ।।७७||