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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो] [ १३५
सवैया बालस वेस रहें सबही दिन, मान करें न कछू दिन लाजें। सेत सरोज सुं हेत धरे, अति ऊजल चीर सरीरहि छाजें। वारिज कोस वन्यो मदन ग्रह वीरज नीरज वास विराजें। देह लही मनमत्त निरंतर रंभा के रूप पदमणी छाजें ।।६।।
कवित्त रूपवंत रतिरंभ, कमल जिम काय सकोमल । परिमल पुहप सुगंध, भमर बहु भमे विलावत । चंप कली जिम चंग, रंग गति गयंद समाणी। ससि वदनी सुकमाल, मधुर मुख जपें वाणी ॥ चंचल चपल चकोर जिम, नयण कंत सोहें घणी। कहें राघव सुलतान सुण, पुहवी इसी ह पदमणी ॥७०॥ कुच युग कठिण सरूप, रूप अति रूडी रांमा। हसत वदन हित हेज, सेझ नित रमे सुकामा ॥ रूसें त्रूसे रंग, संग सुख अधिक उपावें। राग रंग छत्तीस, गीत गुण ग्यान सुणावें ।। सनान मंजन तंबोल सुं, रहे असोनिस रागणी। कहें राघव सुलतान सुण पुहवी इसी तू पदमणी ॥७॥ वीज जेम मलकंत, काति कुंदण जिम सोहें। सुरनर गुण गंधर्व, रूप तृभुवन मन मोहें। त्रिवली, मयतन लंक, वंक नहु वयण पयंपें। पति सुं प्रेम अपार, अवर सुं जीह न जंपें ॥