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________________ १३४] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो तनवि चित्रणी विचित्र, हस्तनी मस्त हसती। संखनि कुचित सरीर, नार पदमणी छत्रपती ।। संखनी पाच हस्तनी दसह, पनरह रूप सु चित्रणी। कहें राघव सुलतान सुन, वीस विशवा पदमणी ॥४॥ दूहा सुनि सब त्रिय के रूप गुण, इम जपहि सुलतान । अब चित पाई पद्मनी, करहुं विशेष वखांण ।।६।। पदमनि निरमल अंग सव, विकसत पदमणि [सु] हेज। प्रेम मगन ऐसी खुलें, ज्यु पकज रवि तेज ॥६६॥ छप्पय चित चंचल वय स्याम नैन मृग भ्रोइ अलिंगन । तिल प्रसून तस समन सिहासन मुख अधर विद्रुमन ॥ अति कोमल सव अंग वयण सीतल अति हंस गति । तन सूछिम कटि छीन प्रगटी दामनि देह द्युति ॥ आनंद चंद पूरण वदन, मन पवित्र सब दिन रहें। आहार निमख इच्छित अमल, विमल ठोर पदमनि लहें ॥६७|| दूहा पदमणि चंपक वरण तन, अति कोमल सब अंग। चिहुं ओर गुंजित भमर, निमखन छारत संग ।।६८।।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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