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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल सवन्ध खुमाण रासो ] [ १३१
कर ऊपर दोई असवार, नृप सींघल मुक्यो तिणवार । आयस कीधो ए उपगार, परणण रो मुशकल व्यवहार ।।३।। बहिन अछे सींघलपति तणी, परतिख आप अछे पदमणी। अभिग्रह लीधो एहवो नार, जी मुझ थी पासा सार ॥३७|| अधिपति खाधी हार अनेक, जीपें तस परणु सुविवेक । रमवा वंठो रतन नरेश, हारवी पदमणि ने लघुवेश ॥३८॥ सींघल नृप व्याही पदमणी, दीधी परिघल पहिरावणी । रह्यो केताइक दिन सासरे, चालणरी सीमाई करें ॥३॥ सीख माँग चाल्या घर भणी, साथें लीधी नृप पदमणी। 'घणे भाव बहु प्रीतें घणी, पहुंचाया सींघल रे धणी ॥४०॥ अनुक्रमें आया गढ चीतौड, रतनसेन मन अधि कोड। राणी सुजं राजान, म्हें परण्या पदमणि करि मान ।।४।। थे मोसो मार्नु वाहियो, वोल कह्यो मो निरवाहि [इ] यो। अहनिस गेंर महिल आवास, पदमण सुसेमें करें रजास ॥४२॥ एक दिन आयो राघव व्यास, पदमणि नृप वेठा सुविलास । राणो रतनसेन कोपिओ, पदमणि रूप ब्रामण पेखियो ।।४।। आँख कढ़ाव राघव तणी, इण दीठी निजरें पदमणी। जीव लेइ ने भागो नीठ, अधिपति कोप्यो आकारीठ ॥४४॥ माणस लेइ गढ़ थी उतस्यो, दिल्ली नगर राघव संचस्यो। वाचे राघव शास्त्र अनेक, वात वखाण करें सुविवेक ॥४॥ जस विसतरियो दि [ल] ली माँह, तेडाव्यो पंडित पतिसाह । आलम ने दीधी आसीस, द [ल्] लीपत कीनी बगसीस ४६ ।