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१३० ] | रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संवन्ध खुमाण रासो जग असपति जसकरण, नवल विजपाल नरेसुर । नागपाल नरसीह, राण गिरधर राजेसुर ।। पीथड पुनोपाल, मल्ल मोहण मय मत्तह। सीहडमल भीमक, राण भाखर रण रत्तह ।। लणग्ग करण लाखा दलां, मोड मंडल श्री लखमसी। अरसी हमीर खेतल खगां, अवनी सहु लीधी इसी ॥२८॥
चौपाई
राणो रतनसेन गहिलोत, देसपती मोटो देशोत । राज करें नृप गढ चीतोड, राजकुली से कर जोड़ ।।६।। एक दिन नृप बैठो वेसणे, पटरांणी सुं पेमे घणें । भोजन माहें स्वाद न कोय, चतुराई तुम माहें न कोय ॥३०॥ राध न जाणा भोजन भणी, परणो थे सींघल पदमणी। अंजस करे राणो नीसस्यो, गढ़ चीतोड़ थकी ऊतस्यो ॥३॥ अश्वें चढीयो राण उलास, साथै लीधो खान खवास । राणा ने सेवक पूछियो, आफै केथ पयाणो कियो ॥३२॥ आपा जास्या सींघल देश, तिहां नाए पदमण परणेस । अगुवो लीधो साथै भाट, ते सींघल री जाणे वाट ||३३।। रांणो दरियार तट गयो, जालिम सिद्ध जोगी दरसियो। जोगी जपें रतन नरेश, थे किम आया कवण विसेस ॥३४॥ आयस से अधिपति वीनवें, पदमणी वरण जाऊँ हिवें। पार उतारो मुझ गुरदेव, सींघल ले जावो सुज हेव ।।३।।