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________________ १२८] [गोरा वादल कवित्त कहीं एकावली हार, कहिक धरणी धंधोलिय; ... कहीं जम्बुक किहीं अत मस गिरधण विछोडीय । गढ छल त्रीय छल सामि छल, बिहुँ छल भिड्यउ सुकवि कहइ, गोरल्ल सूर भेटण चली, सु ख्रिण एक रवि रथ खंचे रहइ ॥७॥ जे सिर पड्यउ धर पिट्ठ, धरा देई इंद्र पठायउ, इंद्र हथ थल स्यु, सोड सिरि ग्रिविण उठायउ । गिरिधण कर छुटेवि, पड्यउ गंगाजल मञ्ज, गंगाजल उत्त ग, हुओ अमृत सिरि बन्ज। इम अंमीय गाह नयण चंदण चूउ, तब कंदल मंड्यउ घणउ, गलि रुंडमाल गुथेवि लीय, तो सर सिद्धि गोरल तणउ ॥८॥ जे वादल्ल जंपति, विरद वादल अरि गंजण, संकडि स्वामि सन्नाह, असुर भारथ अरि गंजण । कीयउ जुद्ध सुरताण हण्या हसती मय मत्तह, आयउ मोरउ कंत, तहिज दिद्धउ अहि वातह । पदमिणी नारि इंम ऊचरड, तोहि धन्य धन्य अवतार हूअ, आरती ऊतारउ हो वर तुरिणि, जे वादल्ल जपंति तूअ ।।८।। अचल कीति श्री राम, अचल हनुमन्त पवन सुअ, अचल कीर्ति हरिचंद, अचल वेली पुहवी हुअ । अचल कीर्ति पाडवा, जेण कइरव दल खंडीय, अचल कीर्ति अहिवन्न, जेणि चक्कावहु मंडीय । विक्रम कीर्ति जिम अचल हूअ, भोज अचल जुग जाणीइ, तिम अचल कीर्ति गोरल तूय, बादल कीर्ति वखांणीयइ ।।८।। ॥ इति श्री गोरा वादल कवित्त सम्पूर्ण ।।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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