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गोरा वादल कवित्त ]
[ १२७ मारि मारि करि उठीया, वाढल्ल तिहा संमुह सस्यउ, जब लगइ झूमि दल पति हृउ, तव लग हईवर पखत्त्यउ ।।७४|| हुई हाक दल माहि, भई कलकली वृवारव, गय गुडिय हय पखरिय, सुहड सन्नाह करइ तब । एको सिर टंति, एक धड धरिणी लुइ, खग्ग ताल वाजंति, वांण सींगणि गुण छुट्टइ। इम भग्यउ सेन असपति सरस, पातिसाह विलखउ भयउ, गोरइ गयंद दल कुट्टायो, बादल्ल राउ तब लेई गयउ ||७५।। करी पइज वादल्ल, नारि उगारी बलहिं छल, मंनि संक्यउ सुरताण कज्ज करि आयउ भुजा वलि । असपति मोडउ माण, सामि आपणउ उवेल्यउ, भजे गय घण घट्ट, मीर मुगला सत मेल्ह्यउ । इम सुणवि माइ आणंद कीय, पुत्त परदल भजीयउ, उवरी वात बादल्ल की, सो पदमणी कंत उवेलीउ ॥७६||
कुंडलीया गोरल्ल त्रीया इंम ऊचरड, सुणि बादल तोहि सत्ति, मो प्रीउ रिण माहि झूझीय, कहि किम वाह्या हत्थ ||७|| कहि किम वाह्या हाथ, वत्थ वइ सुहुड पाछाडीय, भंजी गय घण थट्ट, पाव दे सीस विभाडीय । हय गय रथ पायक, मारि वल्लीयउ बोरिल्ल, वेग माइ सत्ति चडउ, एम रिण पड्यउ गोरिल्ल ||७८|| कहिं धड़ कहिं सिरि कहीं कमंध, कहिंक पजरही पडीउ, कहीं कर कहीं करमाल कहि कहि मरवि छुडीयउ ।