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[गोरा वादल कवित्त
तब खुशी भयउ सुरताण, वेगि फुरमाण चलायउ, सुणि गोरे वादल्ल, साथि करि पदमणि ल्याउ। जे तुम्ह कह सोई करउ, राउ की बेरी कट्ट, बाद गस्त हूं कर, ईहा रहि नीर न घुट्ट। पहिराइ राइ तेजी दिउ, बोल बंध दे पठव', इम कहइ साह वाढल्ल सुणि, तोहि निवाजि दुनिया दिई ।।७।। कीयउ कूड वाढल्ल, आय डोले सपत्तउ, तस माहिं रख्यउ वालः, नाम पदमिणी कहतउ । हूउ हरख सुरताण, जब ही आवत सुणी नारी, गोरी तव पूछीउ, बोल बोलीयउ विचारी। । अल्लावदीन सुरताण सुणि, एक बात मेरी साभलउ, पदमिणी नारि इंम अचस्याउ, एक वार राजा मिलडं ॥७२।। वादल्ल तिहा पठयु, राय जिहा वधन बंधीय, गहीय राय पय कमल, काज अप्पणउ इंम किधीय । हूउ कोप राजान, बहर तई साध्यउ वयरीय, रे रे कुबुद्वीय कुड, नारि किम आणी मोरीय। वादल्ल ताम इम उबरइ, खिमा करउ स्वामी सही, मई वालक रूप पदमिणि करी, राउ नारि निश्चइ नही ।।७३।। वाढल्ल तव लेइ चल्यउ, राउ चकडोल सरसीय, खगधारी सनमुख, भड्यउ सुरताण सरसीय । करी पारसी मुगल्ल, हींदू सब कूड कमाया, लंकामणि उद्धत्त्वउ, अतुल वल सेन सवाया।