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[गोरा बादल कवित्त सुख सेजन माणी तन, कंता बाले फल कीय हुय, संग्रांम सामि किम मुझस्यउ, कहुन कुमर गाजन सुय ।।६।। लोअण तेह खिसि पडउ, केय पर त्रीय उल्हासी, चरण तेह गलि जाउ, जेण रिण पाछा नासी । हीयो तेह फुटीयो, लेण मन कीयो दुमंन्नउ, श्रवण तेह सधीइ, जेण हरि सुण्यउ विमंन्नउ । वादल्ल कहइ रे नारि सुणि, असुर सेन त्रिणवडि गिणत, ' नीपजे न सरवर सेन, जुन साह सनमुखि हणउं ।।३।।
कुंडलीया कंता झझिसि कवण परि, किम करवाल ग्रहंति, पेखि सागि अणी अग्गला, किम करवर झालंति ॥४॥ किम करवर झालति, कुत अणी अग्गल फुटइ, खग्ग ताड वाजंति, सुहुड़ अधो धड तुट्टइ। जु प्रीय कायर होय, पेखि गय जूह गजता, तु मोहि आवइ लज, जु तुरिणि भजिसि कंता ।।६।। हय सू य नरदलउँ, हस्ती सू हस्ति पछाड़, कुतकार सुकुंत, खग्ग सुखग्ग विभाड। छत्र छत्र छिनि छिनि, चमर आडंबर नोड, तु जायु गाजन्न. माह समहरि चडि मोडल। बादल्ल कहइ रे नारि सुणि, तब ही तुझ सेजई सरउ, चीतोडि रांण पदमावती, हूं वादल एकत करउं ॥६६।। सुणि स्वामी वीनती, कयण एक कहुँ सु मिठउ, मो सिरि चड कलंक, वाह ककण नहि छट्टउ।