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गोरा बादल कवित्त
कायर झखइ आल, राणी दे राजा लिज्जइ, अल्लावदीन सुरताण सउ, केस करि खम्ग धरिज्जा। इम कहइ चाड रावत सुणि, हीइ मत्रि निचल धरउ । गढ रहइ राउ छट्टइ सही, त्रीया दई इतउ करउ ।।५।। वयण सुणी रावत्त, रोस करि खरा रीसाणा । दोय चडीया अति कोप, दोय अति चतुर सयाणा । रिण माही अणुसरया, सीस बड समुहा बछी । मोल मुहुगा लहइ, चडड कुंजर सिर तछी। गोरउ गरिष्ट बादल विपम, दोय साहस समुहा सस्था । फुट्ट मुहीयो जिवा गल3, जिणि पदमिणि देणा कल्या ॥५॥ आवि माइ तिणि ठाय, पासि वाटल इम टढीय, तोहि विण पुत्र निरास, तु ह चल्यु मुझण कसीय । नयण मोरउ वादल्ल, वयण वाढल्ल भणावीय, प्राण मोर उ बादल्ल, वार वारई समझावीय । आवती माय अब पेखि करि, उठि बादल्ल प्रणाम कीय, बालक पुत्र जगि जगि जयो, किणइ कुमित्र कुमत दीय ॥५७|| हुं कित बालउ माय, धाइ अचल नहि लराउ , हुँ कित बालउ माय, रोय भोजन नही मग्ग। हुं कित बालउ माय, धूरि धूसर नहीं लिट्ट, हुँ कित बालउ माय, जाइ पालणइ न घुटउं । वालउ ज माय मुझ क्यु काउ, अवर राय रखउँजीउ, सुलताण सेन विनड नही, तव रे माय फट्ट हीउ ॥८॥
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